48 साल की शमां को पाकिस्तान से आए 21 साल बीत गए हैं, वह न तो भारतीय नागरिक बन पाई है और न ही दोबारा पाकिस्तान का रुख किया है। भारतीय सिस्टम से बुरी तरह से हाताश हो चुकी शमां इस बात से काफी राहत महसूस कर रही है कि वह कम से कम हिंदुस्तान में है। पाकिस्तान में तो हिंदू रीति रिवाज का पूरा मजाक व तमाशा बनाया जाता है। हिंदू है ही कम, जो थे वह मुस्लिम बनते जा रहे हैं। पाकिस्तान के बाऊपट्टी सियालकोट की शमां 21 साल पहले अपने पति कृष्ण लाल, बेटी चंदा, सुमन व बेटे विजय और मां सत्या के साथ भारत आ गयी थी।
जालंधर के भार्गव कैंप में आकर रहने लगी। भारतीय नागरिकता लेने के लिए जालंधर से लेकर दिल्ली तक कई बार धक्के खा चुकी शमां बताती है कि हमारे इलाके में तो दो-तीन परिवार ही हिंदुओं के थे। मुस्लिम अधिक थे, वह तो हमारे रीति रिवाज का पूरा तमाशा बनाते थे। हम गली में टेंट लगाकर शादी नहीं कर सकते थे, अगर बंद करने में सात फेरे की रस्म करने की कोशिश करते तो आसपास के लोग तमाशा समझकर कमरे में घुस आते थे। हमारा कोई बुजुर्ग पूरा भी होता तो अंतिम संस्कार के समय हमें काफिर कहकर संबोधित करते थे।